Evening Wind by Edward Hopper (1921)
दीवार में खिड़की
खिड़की में रात
खिड़की की रात
दीवार से उजली।
खिड़की में रात
खिड़की की रात
दीवार से उजली।
दीवार की रात
में भी एक खिड़की
फैली हुई विशाल
सिरहाने से लेकर
छत तक चढ़ आयी खिड़की।
में भी एक खिड़की
फैली हुई विशाल
सिरहाने से लेकर
छत तक चढ़ आयी खिड़की।
खुद परछाईं
पर चौगुनी खिड़की
हर कोने से खींची सी
भीतर इसके
और परछाइयां
पंखे की हौली धड़कन
और भागती हुई एक और छोटी सी खिड़की।
पर चौगुनी खिड़की
हर कोने से खींची सी
भीतर इसके
और परछाइयां
पंखे की हौली धड़कन
और भागती हुई एक और छोटी सी खिड़की।
रात घनी हो
दीवारें कई हों
पर खुलती रहें
ऐसी खिड़कियां
उजली सी
लहराती सी
चारों ओर फैलती ब्रह्माण्ड सी।
दीवारें कई हों
पर खुलती रहें
ऐसी खिड़कियां
उजली सी
लहराती सी
चारों ओर फैलती ब्रह्माण्ड सी।